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श्रीमद्भगवद्गीता मेराचिन्तन— सूक्ष्म सारांश एवं तत्संबंधित विचार

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                            श्रीमद्भगवद्गीता का सूक्ष्म सारांश―                 मनुष्य जीवन की एक सच्चाई है कि जब वह किसी गहरे संकट में पड़ता है तभी वह एक ऐसे मार्ग की ओर चल पड़ता है जिसका स्वयं उसको भी पता नहीं होता है । जीवमात्र का प्रतिनिधित्व करने वाले अर्जुन की भी यही स्थिति युद्धक्षेत्र में हुई । जिसपर वह किंकर्तव्यविमूढ़ है अब उसे कोई  मार्ग नहीं दिख रहा कि वह क्या क्या करे ? इस पर उसने परम हितैषी अपने सखा, सारथी और स्वामी कृष्ण की शरण ग्रहण की ।                   वास्तव में आर्य की क्या परिभाषा है २/२ और मनुष्य किसे कहते हैं यह गीता भलीभाँति प्रतिपादित करती है । जब भी किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति बने और गीता की तटस्थ होकर शरण ग्रहण की जाये तो हमें हमारे कर्तव्य का बोध हो जायेगा । मनुष्य कौन है और कौन मनुष्येतर ? यही गीता का सूक्ष्म विषय है । ...